कास्टिंग में प्रयुक्त पैटर्न के प्रकार | Types of Pattern Used in Casting in Hindi
यह लेख इंजीनियर तथा डिप्लोमा के छात्रों के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण है। यह टॉपिक अधिकांश परीक्षाओं में पूछे जाते है। इस लेख में ड्राइंग भी दिया गया है, जिसका आप अभ्यास कर सकते है।
कास्टिंग में प्रयुक्त पैटर्न के प्रकार
ढलाई शाला में कास्टिंग में प्रयुक्त पैटर्न निम्नलिखित प्रकार के होते है:-
1) ठोस, एकल खंडी या सपात पैटर्न (Solid, One Piece or Flat Back Pattern):- इस पैटर्न में एक सपाट पृष्ठ या सतह होती है जो विभाजक सतह का काम करते हैं। यह एक खंड या ठोस होता है। यह ढाले जाने वाली वस्तु का पूर्ण नमूना हो सकता है जबकि इसमें क्रोड़ प्रिंट नहीं होता है। इस प्रकार के पैटर्न का पूरा सांचा या तो कोप में या ड्रैग में बनाया जाता है। इस पैटर्न का सांचा बनाने में साँचाकार को स्वयं गेट, रनर तथा राइजर बनाने पड़ते हैं इसमें समय लगता है। इन पैटर्न के सरल उदाहरण मिट्टी ठोकने वाला, इंजन का स्टाफिंग बॉक्स आदि है।
2) द्वीखंडी, विभक्त या बहुखंडी पैटर्न (Two Piece, Split and Multi-Piece Pattern):- द्विखंडी खंडी पैटर्न में मुख्य रूप से 2 भाग होते हैं जो समान या असमान रूप के हो सकते हैं। दोनों भागों को मिलाने वाली सतह विभाजक सतह कहलाती है और यही सतह सांचे को विभाजक सतह होती है। एक भाग को कोप तथा दूसरे भाग को ड्रेग में बनाया जाता है। इन दोनों भागों को डोवेल पिनों द्वारा सीध में जोड़ा जाता है।
जब द्वीखंडी पैटर्न के दोनों भाग समान आकृति तथा साइज के होते हैं तो इसे विभक्त पैटर्न कहा जाता है। विभक्त पैटर्न के मुख्य उदाहरण बेलन, पानी का टेप, भाँप वाल्व की बॉडी तथा बियरिंग और छोटी पुली इत्यादि है। सांचा बनाने की सुविधा को ध्यान में रखते हुए कभी-कभी पैटर्न को तीन या अधिक भागों में भी बनाया जाता है। इस स्थिति में बहुखंडी पैटर्न कहलाते हैं।
3) द्वार युक्त पैटर्न (Gated Pattern):- बड़े पैमाने पर छोटी वस्तुओं की ढलाई करने के लिए आमतौर पर कई पैटर्नों को मिलाकर एक साँचा तैयार किया जाता है। इस स्थिति में गेट आदि हाथ से काटे जाएं तो काफी समय नष्ट होगा और ठीक प्रकार से कट भी नहीं हो पाएंगे। इस समस्या के समाधान के लिए पैटर्न के साथ गेट तथा रनर आदि का भी निर्माण किया जाता है। इस प्रकार वस्तु के सांचे के साथ गेट आदि के सांचे भी प्राप्त हो जाते हैं। आमतौर पर द्वार युक्त पैटर्न धातु या लकड़ी के बनाए जाते हैं।
4) मैच प्लेट पैटर्न (Match Plate Pattern):- प्लेट पर लगा पैटर्न साधारणतया मैच प्लेट पेटर्न कहलाता है क्योंकि जब साँचा जब तैयार हो जाता है तो कोप ड्रेग से ठीक मेल खाता है। आमतौर पर प्लेट लकड़ी या धातु की होती है। हल्का होने के कारण धातु प्लेट की दशा में एल्युमिनियम का अधिक प्रयोग किया जाता है। कभी-कभी द्विखंडी पैटर्न में एक भाग दूसरे से बड़ा होता है तो बड़ा भाग साधारणतया प्लेट की ड्रेग साइड या नीचे की ओर रखा जाता है। स्प्रू आधार, रनर तथा गेट आदि पैटर्न के ही पदार्थ के बनाए जाते हैं। स्प्रू सामान्यता वह ऊर्ध्वाधर मार्ग है जिसमें से होकर धातु सांचे में नीचे आती है। रनर वह द्वितीय मार्ग है (सामान्यतः क्षैतिक) जिसमें होकर धातु साँचे में प्रवेश के लिए जाती है। गेट वह तीसरा मार्ग है जिसमें से होकर धातु सांचे में प्रवेश करती हैं।
5) कोप और ड्रेग पैटर्न (Cope and Drag Pattern):- भारी तथा बड़े आकार के वस्तु को ढूंढने में कठिनाई होती हैं और एक व्यक्ति द्वारा इस प्रकार सांचा बनाना संभव नहीं होता। इस समस्या के समाधान के लिए बड़े पैटर्न को दो भागों में बांट दिया जाता है और उन्हें अलग-अलग बोर्ड़ या प्लेट पर लगा दिया जाता है। यदि बोर्ड़ पर दोनों भाग ठीक प्रकार से लगाए गए हो तो कोप तथा ड्रेग सांचो को मिलाने से पूर्ण सांचा प्राप्त हो जाता है।
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कोप और ड्रेग पैटर्न |
6) पृथक अवयव पैटर्न ( Loose Piece Pattern):- कभी-कभी ऐसी वस्तुओं को ढ़ालना पड़ता है कि उनके सांचे में से पैटर्न को एक साथ निकालना संभव नहीं होता और यह समस्या एक से अधिक विभाजक रेखाएं बना कर भी हल नहीं होती। इस स्थिति में पैटर्न का जो उभार सांचे में से निकाले जाने में संभव नहीं होता उसे अलग से बनाकर पिन आदि की सहायता से जोड़ दिया जाता है। और सांचा बनाने की क्रिया में यह पिन निकालकर मुख्य पैटर्न से अलग किया जा सकता है। इस प्रकार बना पैटर्न पृथक अवयव पैटर्न कहलाता है।
7) स्वीप पैटर्न (Sweep Pattern):- स्वीप पैटर्न वास्तव में एक पैटर्न नहीं होता। बुहारी धातु या लकड़ी की एक प्लेट होती है जिसकी वाह्य आकृति ढाली जाने वाली वस्तु के वाह्य रेखा के आकार की होती है। बुहारी को एक स्पिंडल पर लगा दिया जाता है और यह स्पिंडल स्वयं रेत के नीचे एक पीवट पर घुमायी जाती है। साँचा बनाने के लिए सबसे पहले मध्य में स्पिंडल पीवट लगाए जाते हैं। फिर साँचे के आकृति की लगभग कुछ छोटी रेट काट दी जाती है। फिर बुहारी को स्पिंडल पर घुमा कर शेष रेत की कटाई करके सांचे की आकृति प्राप्त की जाती है। अधिकतम स्थितियों में वृत्ताकार सांचे ही तैयार किए जाते हैं परंतु पिवट की स्थिति बदलकर अन्य संबंधित आकृतियों के साँचे तैयार किए जा सकते हैं। इस विधि द्वारा परिशुद्ध माप के साँचे तैयार नहीं किए जा सकते, परंतु लगभग माप की ढलाई के लिए उपयोगी है। साधारणतया इस विधि का उपयोग सीवर कवर तथा बड़े-बड़े घंटे इत्यादि की ढ़लाई में होता है।
8) खंड पैटर्न (Part Pattern):- खंड पैटर्न किसी पैटर्न का एक भाग होता है जिसे ठीक ढंग से कई बार प्रयोग करके पूरा साँचा तैयार किया जाता है साधारणतया यह पैटर्न वृत्ताकार पैटर्न के लिए प्रयोग किए जाते हैं जैसे रिंग, पहियों के रिम और गियर इत्यादि।
पहिए के रिंग का एक खंड दिखाया गया है। रिम का साँचा बनाने के लिए सर्वप्रथम नीचे की रेत ठोक कर समतल कर ली जाती है। फिर समतल स्थान के मध्य एक खूंटी लगा दी जाती है जिससे खंड पैटर्न संबंधित कर दिया जाता है। खंड के बाहर तथा अंदर के ओर की रेत ठोक दी जाती है फिर खंड को हटाकर परिधि पर आगे स्थित करते हैं तथा पहले की तरह रेत ठोक देते हैं। इस प्रकार की क्रिया करके कई भागों में पूरी परिधि पर रिम का साँचा प्राप्त कर लिया जाता है।
9) खोल पैटर्न (Shell Pattern):- इस प्रकार के पैटर्न का उपयोग अधिकतर नल कार्य तथा निकास फिटिंग में किया जाता है। पाइप फिटिंग के एक मोड़ का पैटर्न दिखाया गया है। पैटर्न का आधा भाग प्लेट पर लगाया जाता है। दोनों भागों को आपस में सूक्ष्मता से डोवेल पिनों द्वारा जोड़ा जाता है। यह पैटर्न खोल के समान खोखले होते हैं और इनकी ढलाई जोड़ों में की जाती है। पैटर्न की वाह्य आकृति का उपयोग सामान्य पैटर्न की भांति किया जाता है जबकि आंतरिक आकृति क्रोड़ बनाने के लिए क्रोड़ बॉक्स का काम करती है।
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खोल पैटर्न |
10) कंकाली पैटर्न (Skeleton Pattern):- कंकाली पैटर्न वह है जिसका कुछ भाग लकड़ी और शेष भाग रेत से बनाया जाता है। कंकाली पैटर्न से बड़े-बड़े जल तथा निकासी पाइप, पाइप के मोड़ तथा बॉडी वाल्व आदि ढालकर प्राप्त किए जाते हैं। यह पैटर्न साधारणतया दो भागों में बनाया जाता है। एक भाग ड्रेग दूसरा कोप में साँचा बनाने के काम आता है।
11) वाम और दक्षिण हस्त पैटर्न ( Left and Right Hand Pattern):- चित्र में 2 ब्रैकेट दिखाई गई हैं जिन पर एक शाफ़्ट सधी है। दोनों ब्रैकेट समरूप तथा समान है परंतु इन्हें आपस में बदला नहीं जा सकता और एक ही पैटर्न की सहायता से दोनों को ढाला भी नहीं जा सकता। इस प्रकार के पैटर्न को सदैव जोड़ों में बनाना आवश्यक है। परंतु जब एक या दो वस्तुओं की आवश्यकता होती है तो इन उभारों के टुकड़े एक ही पैटर्न पर विपरीत दिशाओं में लगाकर दोनों भाग ढ़ाले जाते हैं। इनमें प्रमुख उदाहरण लकड़ी खराद मशीन के पैर, बगीचों में बेंचो के पैर आदि हैं।
12) बॉक्स पैटर्न (Box Pattern):- जब वस्तु का आकार आयत जैसा है तो बॉक्स पैटर्न का प्रयोग किया जाता है। इसके अंतर्गत लकड़ी की पट्टियों या तख्तों को सरेस या पेंचों की सहायता से आपस में जोड़कर बॉक्स के आकार का पैटर्न बनाया जाता है। इन पैटर्न की उपयोगिता इसमें है कि पैटर्न बनाने में लकड़ी का ख़र्चा कम हो जाता है, साथ में भार भी काफी कम हो जाता है।
13) संघटित पैटर्न (Built-up Pattern):- यह पैटर्न दो या अधिक भागों को मिलाकर बनाए जाते हैं। इनमें वांछित वक्रता प्राप्त करने के लिए छोटी-छोटी लकड़ियों की पट्टियों की वक्रता में काट कर जोड़ दिया जाता है। इन पट्टियों की अनेक परतों को सरेस द्वारा जोड़कर आवश्यक मोटाई प्राप्त की जाती है। इस प्रकार के पैटर्न की सहायता से विशेष प्रकार की पुलियों के साँचे प्राप्त किए जाते हैं।
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Lagged-up Pattern |
14) Lagged-up Pattern:- इस प्रकार के पैटर्न के अंतर्गत लकड़ी की अनेक फट्टियों को सरेस, कीलों या पेंचों से दोनों ओर के सिरों पर जोड़ा जाता है। इस विधि का प्रयोग बड़े सिलेंडर का बैरल के पैटर्न बनाने के काम आता है। यह पैटर्न केंद्र पर विभक्त रहते हैं। प्रयोग की जाने वाली दोनों साइड फट्टियों को इस प्रकार टेपर की जाती है जिससे जोड़ बिल्कुल बंद हो जाए। इसके लिए सर्वप्रथम हेड का निर्माण किया जाता है जिनकी आकृति सिलिंडर या बैरल की बाहरी सतह के आकार की होती है। फिर इन सिरों पर लंबी-लंबी फट्टीयां लगा दी जाती है।
आशा है यह लेख आपको पसंद आया होगा। इस आर्टिकल में ढलाई शाला में कास्टिंग में प्रयुक्त पैटर्न के प्रकार (Types of Pattern Used in Casting) की जानकारी दी गयी हैं।
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