उत्तर प्रदेश की नदियां एवं अपवाह तंत्र | Uttar Pradesh Rivers and Drainage System

उत्तर प्रदेश की नदियां एवं अपवाह तंत्र | Uttar Pradesh Rivers and Drainage System

नमस्कार दोस्तों, Exams Tips Hindi शिक्षात्मक वेबसाइट में आपका स्वागत है। इस आर्टिकल में उत्तर प्रदेश की नदियां एवं अपवाह तंत्र से संबंधित जानकारी (Uttar Pradesh Rivers and Drainage GK) दी गई है। जैसा कि हम जानते है, उत्तर प्रदेश, भारत का जनसंख्या की दृष्टि से सबसे बड़ा राज्य है। उत्तर प्रदेश की प्रतियोगी परीक्षाओं में बहुत ज़्यादा कम्पटीशन रहता है। यह लेख उन आकांक्षीयों के लिए बहुत महत्वपूर्ण है जो उत्तर प्रदेश सिविल सर्विस (UPPSC), UPSSSC, विद्युत विभाग, पुलिस, टीचर, सिंचाई विभाग, लेखपाल, BDO इत्यादि प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रहे है। तो आइए जानते है उत्तर प्रदेश से संबंधित जानकारी-


उत्तर प्रदेश की नदियां एवं अपवाह तंत्र | Uttar Pradesh Rivers and Drainage System

➤ अपवाह तंत्र पर धरातलीय संरचना, भूमि के ढाल, चट्टानों के स्वभाव, जल की प्राप्ति आदि का विशेष प्रभाव पड़ता है।

➤ प्रदेश का उत्तरी एवं पश्चिमी भाग ऊंचा है और हिमालय पर पर्याप्त जल स्रोत है अतः प्रदेश की अधिकांश नदियों का प्रवाह उत्तर पश्चिम से दक्षिण पूर्व की ओर है। प्रदेश के मैदानी भाग में समान्तर अप्रवाह तंत्र (Parallel Drainage system) पाया जाता है।

➤  उद्गम स्थलों के आधार पर प्रदेश की नदियों को तीन प्रकार से विभाजित किया जाता है।

हिमालय की श्रेणियों से निकलने वाली नदियां-गंगा, यमुना, काली (शारदा) रामगंगा, गंडक, सरयू (घाघरा या करनाली) आदि। इन नदियों में वर्ष भर जल बना रहता है।

प्रदेश के मैदानी क्षेत्र में स्थित झीलों एवं दलदलों से निकलने वाली नदियां- गोमती, वरूणा, सई, पाण्डो, ईसन आदि। इन नदियों में गर्मी में जल काफी कम हो जाता है।

प्रदेश के दक्षिण में स्थित पठारों तथा विन्ध्य श्रेणियों से निकलने वाली नदियां- सोन, रिहन्द, टोंस, केन, चम्बल, बेतवा, कन्हार आदि। इन नदियों में ग्रीष्म ऋतु में प्रायः जल का अभाव हो जाता है और अधिकांश सूख भी जाती हैं।


उत्तर प्रदेश की प्रमुख नदियाँ


गंगा नदी

➤ यह उत्तर भारत की सबसे प्रमुख व हिंदुओं की पवित्र धार्मिक नदी है। गंगा को सपसरि, भागीरथी, पदमा, देवनंदी, जाहनवी आदि नामों से भी जाना जाता है।

➤ भागरथी उत्तराखंड के उत्तरकाशी जिले में गंगोत्री कस्बे के समीप स्थित गंगोत्री ग्लेशियर के गोमुख नामक स्थान से निकलती है। आगे बढ़ने पर इसमें रूद्रगंगा, जाड़गंगा, अलीगंगा, सियागंगा आदि नदियां मिलती हैं

गणेश प्रयाग (टिहरी) में इसमें भीलगंगा नदी मिलती है। इसके संगम पर टिहरी परियोजना है। आगे बढ़ने पर देवप्रयाग में इसमें अलकनंदा नदी मिलती है। अलकनंदा से सर्वप्रथम विष्णु प्रयाग में पं. धौली गंगा, फिर क्रमशः नंद प्रयाग में नंदाकिनी, कर्ण प्रयोग में पिंडर नदी, रुद्रप्रयाग में मन्दाकिनी नदी और अंत में देव प्रयाग में अलकनंदा स्वयं भागीरथी में विलीन हो जाती है और अब संयुक्त रूप से गंगा के नाम से आगे बढ़ती है।

➤ शिवालिक श्रेणी को काटकर गंगा ऋषिकेश, हरिद्वार से बहते हुए फिर उत्तर प्रदेश के बिजनौर जिले में प्रवेश करती है। क्रमशः मैदान (हरिद्वार) में आते ही इसकी दिशा दक्षिण में दक्षिण पूर्व की ओर बदलने लगती है।

➤ उत्तर प्रदेश में गंगा के बायीं ओर से रामगंगा, गोमती व घाघरा आदि नदियां तथा दायीं ओर से यमुना, टोंस, चंद्रप्रभा, कर्मनाशा आदि नदियों मिलती हैं।

➤ गंगा नदी कुल लंबाई 2510 किमी है।

➤ यह प्रदेश के 28 जिलों से बहती है- मुजफ्फरनगर, बिजनौर, मेरठ, अमरोहा, हापुड़, बुलंदशहर, अलीगढ़, बदायूं, कासगंज, एटा, फर्रुखाबाद, शाहजहांपुर, कन्नौज, हरदोई, उन्नाव, कानपुर देहात, कानपुर नगर, प्रतापगढ़, रायबरेली, फतेहपुर, कौशाम्बी, प्रयागराज, भदोही, मिर्जापुर, चंदौली, वाराणसी, गाजीपुर और बलिया आदि।

➤ गंगा को हल्दिया से प्रयागराज तक राष्ट्रीय जलमार्ग (संख्या-1) के रूप में प्रयुक्त किया जा रहा है।

➤ इसका उद्गम बंदर पूंछ के पश्चिमी ढाल पर स्थित यमुनोत्री हिमनद (उत्तरकाशी) है।

➤ मैदान में आने से पूर्व इसमें टोंस, गिरी तथा आसन नदियां मिलती हैं।

➤ प्रदेश में इसका प्रवेश सहारनपुर के फैजाबाद नामक स्थान पर होता है।

➤ इसमें दाहिनी ओर से इटावा से 40 किलोमीटर दूर औरैया के मपुरादगंज (पंचनदा) के पास चम्बल, हमीरपुर के पास बेतवा, जालौन के जगमनपुर के निकट सिंध, बांदा के पैलानी व भोजहा के निकट केन आदि नदियां तथा बायीं ओर से नोएडा के पास हिंडन नदी मिलती है।

➤ प्रदेश के सहारनपुर, मुजफ्फरनगर, मेरठ, गाजियाबाद, बुलंदशहर, अलीगढ़, मथुरा, आगरा, इटावा, जालौन, हमीरपुर, बांदा, फतेहपुर और प्रयागराज आदि 19 जिलों में बहती हुई प्रयाग (प्रयागराज) में गंगा से मिल जाती है। इसकी लंबाई 1,376 किमी है।


काली (शारदा)

➤ काली नदी उत्तराखंड के पिथौरागढ़ जिले में स्थित कालापानी नामक स्थान से निकलती है।

➤ टनकपुर के बाद इसे शारदा के नाम से जाना जाता है।

➤ प्रदेश में यह सर्वप्रथम पीलीभीत जिले में प्रवेश करती है।


पं. रामगंगा नदी

➤ यह पौढ़ी जिले के दूधातोली पर्वत के जलागम क्षेत्र से निकलती है।

➤ कालागढ़ किले (पीढ़ी जिले में) के निकट मैदानों में उतरती है।

➤ यह नदी 690 किमी बहने के उपरांत कन्नौज के निकट गंगा में मिल जाती है।

➤ इस नदी पर सिंचाई के लिए कालागढ़ में एक बांध बनाया गया है।


घाघरा (करनाली)

➤ घाघरा (करनाली) नदी का उद्गम तिब्बत के पठार पर स्थित मापचा चुंगों हिमनद से होता है। यह नदी पर्वतीय प्रदेश में करनाली और मैदानी प्रदेश में घाघरा कहलाती है। मैदानी भाग में यह नदी दो उपशाखाओं में बंट जाती है। इसकी पश्चिमी शाखा को करनाली और पूर्वी शाखा को शिखा कहते हैं। आगे चलकर यह पुनः एक हो जाती है।

➤ शीशपानी नामक स्थान पर यह 180 मीटर चौड़ा और 600 मीटर गहरा खड्डा बनाती है।

➤ यह लखीमपुर व बहराइच की सीमा बनाते हुए राज्य में प्रवेश करती है। सीतापुर में बासरा के पास इसमें काली नदी मिलती है। आगे चलकर अयोध्या में यह सरयू कहलाती है। अयोध्या से आगे बढ़ने पर देवरिया बरहज के पास इसमें राप्ती नदी मिलती है। फिर यह उ.प्र. से बाहर निकल जाती है और छपरा के पास गंगा में मिल जाती है। इसकी कुल लंबाई 1080 किमी है।


गोमती

➤ गोमती एक स्थलीय नदी है। जिसका उद्गम पीलीभीत जिले में स्थित फुल्हर ताल या गोमत ताल से होता है।

पीलीभीत से यह शाहजहांपुर, खीरी, सीतापुर, लखनऊ सुल्तानपुर एवं जौनपुर आदि जिलों में बहती हुई गाजीपुर के निकट कैची नामक स्थान पर गंगा नदी में मिल जाती है।

➤ गोमती की लंबाई 940 किमी है। गोमती व गंगा संगम पर प्रसिद्ध मार्कण्डेय महादेव मंदिर है। इसकी सहायक नदियों में राई प्रमुख है जो कि हरदोई के भिजवान झील से मिलती है और राजघाट, जौनपुर में गोमती से मिल जाती है। इसकी लंबाई 715 किमी है।


राप्ती नदी

➤ राप्ती नदी नेपाल के पिछले भाग की लघु हिमालय श्रेणी (धौलागिरि) के दक्षिण में रूकूमकोट के समीप से निकलती है।

➤ उत्तरी भाग में इसकी एक मुख्य शाखा बूढी राप्ती के नाम से जानी जाती है। इसकी मुख्य सहायक नदी रोहिणी है जो गोरखपुर में राप्ती के बायीं ओर से मिलती है।

➤ प्रदेश के बहराइच, श्रावस्ती, बलरामपुर, सिद्धार्थनगर संत कबीर नगर एवं गोरखपुर से बहती हुई देवरिया के बरहज नामक स्थान के समीप घाघरा नदी में मिल जाती है। इसकी कुल लंबाई 640 किमी है।


चम्बल

➤ चम्बल का उद्गम मध्य प्रदेश में इंदौर के पास मटू के निकट स्थित जनापाव पहाड़ी से हुआ है। जिसकी ऊंचाई 600 मीटर है। राजस्थान व मध्यप्रदेश की सीमा से बहती हुई

➤ आगरा व इटावा के सीमा पर बहते हुए औरैया के मुरादगंज के पास इटावा से लगभग 40 किमी दूर पंचनदा स्थान पर यमुना में मिल जाती है। काली सिंध, सिप्ता, पार्वती और बनास आदि इसकी सहायक नदियां हैं। यह  वर्षा ऋतु में आकस्मिक बाढ़ों से काफी जन-मन की हानि करती है। इसकी अनियमित जलधारा से नदी के निकटवर्ती क्षेत्रों में काफी गहरी आरनालिकाओं का निर्माण किया है जो कि चंबल के बीहड़ों के नाम से प्रसिद्ध है। इसकी कुल लंबाई 1050 किमी है।


गण्डक

➤ यह नेपाल में 'सालीग्रामी' तथा मैदान में 'नारायणी' कहलाती है। इसकी दो मुख्य सहायक नदियां पश्चिम में काली व पूर्व में त्रिशूल गंगा है। शिवालिक श्रेणी को यह त्रिवेणी नामक स्थान पर पार करती है और नेपाल से निकलने के बाद प्रदेश के महाराजगंज और कुशीनगर जिलों के सीमा पर बहते हुए पटना के निकट गंगा में मिल जाती है। इसकी लंबाई 435 किमी है।


सिंध (काली सिंध)

➤ यह नदी राजस्थान के टॉक जिले (नैनवास) से निकलकर जगमनपुर (जालौन) के उतर में यमुना नदी से मिल जाती है। इसकी कुल लंबाई 416 किमी है।


टोंस

➤ इसका उद्गम मैहर के निकट खाला कुंड से होता है। इसके मार्ग में कई सुंदर जल प्रपात है। जिनमें बिहार जल प्रपात 110 मीटर ऊंचा है। जिसकी सहायक बेलन नदी पर भी 30 मीटर ऊंचा जलप्रताप है। यह सिरसा (प्रयागराज) के पास गंगा में मिल जाती है। इसकी कुल लंबाई 265 किमी है।


बेतवा

➤ इसे चेत्रवती के नाम से भी जाना जाता है। यह मध्य प्रदेश में भोपाल के दक्षिण-पश्चिम से निकलकर भोपाल, ग्वालियर, ललितपुर, झांसी और जालौन से होती हुई हमीरपुर के निकट यमुना नदी में मिल जाती है। इस नदी की कुल लंबाई 480 किमी है। इसके ऊपरी भाग में कई स्थान पाये जाते हैं।


केन

➤ इसे कर्णवती के नाम से भी जाना जाता है। इसका उद्गम कैमूर पहाड़ियों का उत्री ढाल है। कैमूर पहाड़ियों से निलकर यह बुदेलखंड से गुजरती हुई बांदा में प्रवेश करती है और बांदा में भेजहा के निकट यमुना नदी में मिल जाती है। इस नदी की कुल लंबाई 308 किमी है।


सोन

➤ यह अमरकंटक पहाड़ी के शोषाकुंड नामक स्थान से निकलकर पूर्व की ओर मध्य प्रदेश से बहने के बाद उत्तर प्रदेश के सोनभद्र में बहती हुई बिहार में प्रवेश कर जाती है और पटना के निकट गंगा में मिल जाती है। ➤ बनारस सोनभ्रद रिहन्द, कुन्हड़ आदि इसकी सहायक नदियां है। वह अपने मार्ग में अनेक प्रपातों का निर्माण करती है। इसकी लंबाई 780 किमी है।


हिंडन

➤ यह ऊपरी शिवालिक की तलहटी से निकलकर गंगा व यमुना नदियों के बीच सहारनपुर, शामली, मुजफ्फरनगर, मेरठ, बागपत और गाजियाबाद में लगभग 100 किमी बहते हुए गौतम बुद्ध नगर के ग्राम मोमनाथ के पास यमुना में मिलती है।


उत्तर प्रदेश में नदी जोड़ परियोजना

25 अगस्त, 2005 को उत्तर प्रदेश व मध्य प्रदेश के बीच केन व बेतवा नदियों को आपस में जोड़ने संबंधी समझौते पर हस्ताक्षर किया गया। जिसके तहत केन नदी का प्रवाह मध्य प्रदेश के साथ साथ उत्तर प्रदेश में बेतवा में स्थानांतरित करने के लिए केन नदी पर एक बांध (पत्रा के निकट बांधने का) बनाया जाएगा, जहां से पानी को नहर द्वारा केतवा में ले जाया जाएगा। 231 किमी लंबी यह नहर झांसी के निकट बेतवा से मिलेगी। नहर के मार्ग में कुछ अन्य जलाशय भी बनाए जाएंगे।


उत्तर प्रदेश में बाढ़ से सम्बंधित जानकारी

उत्तर प्रदेश को लगभग प्रत्येक वर्षा ऋतु में नदियों के उफान का सामना करना पड़ता है जिससे प्रदेश में अपार जनधन की हानि होती है। प्रदेश का लगभग 73.36 लाख हेक्टेयर कृषि क्षेत्र बाढ़ प्रभावित क्षेत्र में आता है। कुल बाढ़ प्रभावित क्षेत्र में से 22.24 लाख है। क्षेत्र को बाढ़ बाढ़ से सपुरक्षित किया जा चुका है जबकि लगभग 36.48 लाख हेक्टेयर अभी भी बाढ़ प्रभावित है


उत्तर प्रदेश में सिंचाई के साधन


➤ प्रदेश में होने वाले मानूसनी वर्षा के अनिश्चित,अनियमित तथा असामयिक होने के कारण सिंचाई के कृत्रिम साधानों का सहारा लेना पड़ता है। प्रदेश में सिंचाई के मुख्य साधन इस प्रकार है-


कुओं द्वारा सिंचाई - प्रदेश के कोमल शैल तथा ऊंचे जल-स्तर वाले क्षेत्रों में कुओं से सिंचाई की परंपरा काफी प्राचीन है। कुएं से जल को बाहर निकालने के लिए रहट, मायादास लिफ्ट, चैन पम्प, वाश रहट, चर्सा या मोट, बलदेव बाल्टी, टैंकली पेंच, हैंड पंप आदि साधनों से किसी का भी आवश्यकतानुसार प्रयोग कर लिया जाता है। गंगा व गंडक माटी के मध्यवर्ती क्षेत्र में कुओं द्वारा सर्वाधिक सिंचाई की जाती है। इसके अंतर्गत उत्तर प्रदेश के गोंडा, बहराइच, बस्ती, फैजाबाद, सुल्तानपुर, आजमगढ़, बलिया, रायबरेली, प्रतापगढ़, मऊ आदि जिले आते हैं।


तालाबों, पोखरों, झीलों एवं नदियों से सिंचाई - उत्तर प्रदेश में सिंचाई के ये सबसे प्राचीन स्रोत हैं। जिनमें बेड़ी, टॅकची आदि तकनीकों का प्रयोग कर सिंचाई की जाती है। प्रदेश के पठारी क्षेत्रों के अलावा अन्य कई क्षेत्रों में आज भी इन स्रोतों से सिंचाई का प्रचलन है। वर्षा के समय तालाबों, पोखरों, झीलों आदि में इकट्ठा हुए जल से समय-समय पर सिंचाई की जाती है।


नलकूप द्वारा सिंचाई - प्रदेश में सर्वाधिक सिंचाई इसी माध्यम से की जाती है। नलकूप 20वीं शताब्दी की देन है। प्रदेश में इसका प्रयोग 1930 में सर्वप्रथम मेरठ में शुरू हुआ। सामान्यतः इनका प्रयोग उन क्षेत्रों में किया जाता है जहां नजर का जल नहीं पहुंच पाता। प्रदेश में निजी व सरकारी दोनों प्रकार के नलकूपों का प्रचलन है लेकिन निजी नलकूपों की संख्या अधिक है। प्रदेश के मेरठ, मैनपुरी, एटा, फिरोजाबाद, इटावा, फर्रुखाबाद, बुलंशहर, मुजफ्फरनगर, सहारनपुर एवं अलीगढ़ जिलों में नलकूपों द्वारा सर्वाधिक सिंचाई की जाती है। भू-गर्भीय जल द्वारा नलकूपों से सिंचाई को लघु सिंचाई के अंतर्गत रखा जाता है।

नहरों से सिंचाई - प्रदेश में सदावाहनी नदियों की अधिकता होने के कारण नजरों का विकास करना आसान है। लेकिन इस प्रणाली के अधिक खर्चीला होने के कारण अभी तक उतना विस्तार नहीं हो पाया है जितना होना चाहिए। पश्चिमी उत्तर प्रदेश में नहरों का अधिक विस्तार हुआ है।

उत्तर प्रदेश की मुख्य नहरें


ऊपरी गंगा नहर - इसका निर्माण 1840 से 1954 के बीच हुआ। इस नहर को हरिद्वार के समप गंगा के दाहिने से निकाला गया है। इसकी लंबाई 340 किमी है। लेकिन शाखाओं-प्रशाखाओं सहित 5.640 किमी है। इससे आगरा नहर तथा निचली गंगा नहर को भी जल मिलता है। जून 2006 में इसका आधुनिकीकरण कार्य समाप्त हुआ है। यह नहर सहारनपुर, मुजफ्फरनगर, मेरठ, गाजियाबाद, बुलंदशहर, अलीगढ़, मथुरा, एटा, फिरोजाबाद, मैनपुरी, इटावा कानपुर, फर्रुखाबाद और फतेहपुर आदि जिलों की लगभग 7 लाख हैक्टेयर भूमि की सिंचाई करती है।


मध्य गंगा नहर - वर्षा ऋतु में गंगा नदी में पर्याप्त जल उपलब्धता को देखते हुए मध्य गंगा नहर परियोजना का निर्माण किया गया। इस परियोजना के तहत बिजनौर जनपद के समीप गंगा नदी का बैराज का निर्माण कर 115.54 किमी लंबी मुख्य नहर को ऊपरी गंगा नहर से मिलाया जा रहा है। इस परियोजना से खरीफ में ऊपरी गंगा नजर के कमांड क्षेत्रों में वर्तमान नहरों को अतिरिक्त जल उपलब्धा हो जायेगा। इस परियोजना से गाजियाबाद, बुलंदशहर, अलीगढ़, मथुरा, हाथरस एवं फिरोजाबाद आदि जनपद लाभान्वित है।

निचली गंगा नहर- 1878 में निर्मित यह नहर नरोरा (बुलंदशहर) नामक स्थान पर गंगा से निकाली गई है। इससे बुलंदशहर, अलीगढ़, एटा, फिरोजाबाद, मैनपुरी, फरूखाबाद, कानपुर, फतेहपुर और प्रयागराज जिलों की लगभग 7 लाख हेक्टेयर भूमि की सिंचाई की जाती है। इस नहर की कुल लंबाई 8.800 किलोमीटर है।

सरयू नहर - सरयू नहर परियोजना का उद्देश्य पूर्वांचल के बहराइच, श्रावस्ती, बलरामपुर, गोण्डा, संत कबीर नगर, सिद्धार्थ नगर, बस्ती, गोरखपुर महाराजगंज जिलों में घाघरा, सरयू व राप्ती नदियों के बल से सिंचाई उपलब्ध कराना है। इस परियोजना के तहत बहराइच जिले की नानपारा तहसील में कतरकनिया धाट के निकट धाघरा नदी पर एक बैराज बनाया गया है इस बैराज के अलावा 4 पंप नहरों (ऊमरियागंज, उतरौला, अयोध्या व गोला) का भी निर्माण किया गया है। उल्लेखनीय है कि 1977-78 से निर्माणाधीन इस परियोजना को अगस्त, 2012 में राष्ट्रीय परियोजना घोषित किया गया है। अब इस परियोजना में, केंद्र व राज्य की व्यय भागीदारी क्रमशः 60 व 40 प्रतिशत निर्धारित की गई है।

रानी लक्ष्मीबाई बांध की नहर- जिले में बेतवा नदी पर माता टीला स्थान पर झांसी, ललितपुर में निर्मित माता टीला बांध से गूरसराय और मंदिर नामक दो नहरें निकाली गई हैं जो

ललितपुर, झांसी, हमीरपुर और जालौन जिलों की लगभग 2.64 लाख एकड़ भूमि सींचती है। इस योजना के दूसरे चरण के पूरा होने पर लाख एकड़ अतिरिक्त भूमि सींची जा सकेंगी।


शारदा नहर - यह प्रदेश की सबसे बड़ी नहर प्रणाली है। जिसका निर्माण 1920 से 1928 बीच हुआ। यह सम्पावत के बनवासा नामक स्थान पर शारदा काली या महाकाली नदी से निकली है। इस नहर द्वारा उत्तराखंड के कुछ जिलों तथा उत्तर प्रदेश के पीलीभीत, बरेली, शाहजहांपुर, लखीमपुर, हरदोई, सीतापुर, बाराबंकी, लखनऊ उन्नाव, रायबरेली, सुल्तानपुर, के प्रतापगढ़, प्रयागराज आदि जिलों की लगभग लाख हेक्टेयर भूमि की सिंचाई होती है। शाखा प्रशाखाओं सहित इस नहर की कुल लंबाई 12.368 किमी है।


रिहन्द घाटी योजना - यह योजना सोनभद्र जिले में रिहन्द नदी की तंग घाटी में, पिपरी नामक स्थान पर बनाई गई है। इस योजना से मिर्जापुर, सोनभद्र प्रयागराज, और वाराणसी जिलों की लगभग 40 लाख एकड़ भूमि की सिंचाई की जा रही है। 


मेजा जलाशय नहर - इस परियोजना में प्रयागराज के बेलन नदी पर मिट्टी का बांध बनाया गया है, जिससे 315 किमी लंबी नहर निकालकर प्रयागराज और मिर्जापुर जिलों की 70900 एकड़ भूमि सींची जाती है।


केन नहर - यह उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश की संयुक्त परियोजना है। यह नहर पन्ना (मध्य प्रदेश) के निकट से निकाली गई है। जिससे प्रदेश के बांदा जिले और मध्य प्रदेश के छतरपुर जिले की लगभग 1.4 लाख एकड़ भूमि सीची जाती है। इसकी लंबाई 640 किमी है।


गंडक नहर- यह उत्तर प्रदेश और बिहार राज्य की एक संयुक्त नहर प्रणाली है। जो इन दोनों के सीमा बिंदु से 18 किमी अंदर नेपाल में बुढ़ी गंडक पर एक बांध बनाकर निकाली गई है। इससे कुशीनगर महाराजगंज, गोरखपुर और देवरिया जिलो के लगभग 20 हजार हेक्टेयर भूमि की सिंचाई होती है।


रामगंगा नहर - उत्तराखंड के पौढ़ी जिले में कालागढ़ नामक स्थान पर रामगंगा नदी पर 128 मी ऊंचा बांध और नहरों का निर्माण किया जाता है। इससे उत्तराखंड व उत्तर प्रदेश के बिजनौर, अमरोहा, मुरादाबाद, रामपुर आदि

जिलों में सिंचाई की जाती है।


आगरा नहर - यह अन्तर्राज्यीय नहर 1874 में बनकर तैयार हुई। इसे दिल्ली के पास (ओखला) से यमुना के 

दाहिने किनारे से निकाला गया है। यह नहर दिल्ली, गुड़गांव, मथुरा, आगरा और भरतपुर की लगभग 1.5 लाख हेक्टेयर भूमि की सिंचाई करती है। इस नहर की शाखाओं और प्रशाखाओं सहित कुल लंबाई 1.600 किलोमीटर है। यह दिल्ली, हरियाणा तथा राजस्थान से भी गुजरती है।


पूर्वी यमुना नहर - यह राज्य की सबसे पुरानी नहर है। इसका निर्माण 1830 में किया गया था। यह फैजाबाद (सहारनपुर) नामक स्थान पर यमुना के बाएं किनारे से निकाली गई है। जिसकी कुल लंबाई 1.440 किमी है। इस नहर के द्वारा सहारनपुर, शामली, मुजफ्फरनगर, मेरठ, गाजियाबाद, हापुड़ और दिल्ली की लगभग 2 लाख हेक्टेयर भूमि सीची जाती है। यह नहर दिल्ली तक यमुना के समानांतर बहती है और पुनः यमुना में ही मिल जाती है। यह शाहजहां द्वारा खुदवाई गई थी। बाद में अंग्रेजों द्वारा विस्तार किया गया।


ललितपुर बांध की नहर - इसमें ललितपुर जिले में शहजाद नी पर एक बांध (ललितपुर बांध) बनाया गया है, जिससे नहर निकाली गई है। इस नहर से झांसी, ललितपुर, जालौन और हमीरपुर जिलों में सिंचाई की जाती है।


बेलन टॉस नहर- इस योजना के अंतर्गत बेलन नदी पर रीवा जिले (मध्य प्रदेश) में बरोध बांध और बेलन की सहायक मरूहर नदी पर एक जलाशय बनाया गया है। जिससे निकाली गई बेलन नहरें द्वारा प्रयागराज जिले की एक लाख एकड़ भूमि की सिंचाई होती है।


चंद्र प्रभा बांध - इस योजना में वाराणसी के चकिया स्थान से दक्षिण में चंद्र प्रभा नदी पर एक बांध बनाया गया है, जिससे निकाली गई नहरों से चकिया और चंदौली तहसीलों की 24000 एकड़ भूमि सीची जाती है।


अहरौरा बांध की नहर- वाराणसी जिले में गडई नदी पर अहरौरा नामक स्थान पर एक बांध बनाया गया है जिससे निकाली गई नहरें वाराणासी और मिर्जापुर जिले की सिंचाई व्यवस्था में सहायक है।


अर्जुन बांध की नहर - हमीरपुर जिले में चरखारी से दक्षिण में अर्जुन नदी पर अर्जुन बांध बनाया गया है। इस बांध से निकाली गई नहरों से जमीरपुर के 26,700 एकड़ भूमि की

सिंचाई होती है।


नगवां बांध नहर - यह नहर कर्मनाशा नदी पर नगवां नामक स्थान पर बने बांध में निकाली गई है। जिसमें मिर्जापुर व सोनभद्र जिलों के 60000 एकड़ भूमि की सिंचाई की जाती है।


बेतवा नहर - यह नहर बेतवा नदी से झांसी के पारीक्षा नामक स्थान से निकाली गई है। यह नहर द्वारा झांसी, जालौन, हमीरपुर, जिलों की लगभग 83000 हेक्टेयर भूमि की सिंचाई होती है।


रगंवा बांध नहर-केन की सहायता वरने नदी पर मध्य प्रदेश में रगंवा बांध बनाया गया है। इससे निकाली गई नजर से केन नहर को भी पानी मिलता है और बांदा जिले में 93000 एकड़ भूमि की सिंचाई की जाती है।


सपरार नहर- यह नहर झांसी के करोंदा गांव से निट सपरार नदी पर बने बांध में निकाली गई है। इसके द्वारा झांसी व हमीरपुर जिलों की लगभग 40 हजार एकड़ भूमि की सिंचाई होती है।


राजघाट बांध एवं नहर परियोजना - ललितपुर जिले में बेतवा नदी पर राजघाट बांध का निर्माण उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश सरकार के बराबर-बराबर सहयोग से किया गया। इससे उत्तर प्रदेश के ललितपुर, झांसी, जालौन एवं हमीरपुर जिलों में सिंचाई की जाती है।


हथनी कुंड बैराज (5 राज्यों का संयुक्त)

सहारनपुर के पास यमुना नदी पर इस बैराज का निर्माण सन 1872 में हुआ था। जिससे पूर्वी और पश्चिमी यमुना नहर को पानी मिलता था। 1978 में भयंकर बाढ़ में क्षतिग्रस्त हो जाने के बाद यमुना जल बंटवारे को लेकर केंद्र सरकार की मध्यस्तता में हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, उत्तर प्रदेश, दिल्ली और राजस्थान के बीच 12 मई, 1904 में पूर्ण हो गई। इसे नया ताजेवाला बैराज भी कहा जाता है।


बाण सागर बांध एवं नहर प्रणाली - तीन राज्यों को इस संयुक्त बाण सागर बांध परियोजना का निर्माण शहडोल (मध्य प्रदेश) जिले में सोन नदी पर किया गया है जिसमें उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश एवं बिहार (अब झारखंड) का योगदान 1:2:1 के अनुपात में है। इस परियोजना से सिंचाई, पेयजल तथा विद्युत उत्पादन की सुविधाएं उपलब्ध हो सकेगी। इससे प्रदेश के सोनभद्र, मिर्जापुर, चंदौली, प्रयागराज आदि जिलों को सिंचाई का लाभ मिलता है।

कनहार सिंचाई परियोजना - सोनभद्र के दुद्धी तहसील में कनहार नदी पर 39.90 मी. ऊंचा 3.24 किमी. लंबा बांध एवं नहर बनाकर दड्डी एवं चोपन ब्लाकों में सिंचाई सुविधा उपलब्ध कराया जाना है।

सौदहा बांध परियोजना - इस बांध का निर्माण छानी ग्राम (हमीरपुर) के पास बिरमा नदी पर किया जा रहा है।

गुन्टा बांध परियोजना - इस बांध एवं नहर का निर्माण रंपुरा ग्राम (चित्रकूट) के पास किया गया है।

पथराई बांध परियोजना - यह परियोजना झासी जनपद के बंगरा ब्लाक में पथई नदी पर निर्माणाधीन है। इस परियोजना में एक बांध और नहर बनाया जा रहा है।

चरखारी डाल नहर परियोजना- यह परियोजना मौदहा बांध परियोजना का एक अंग है। महोबा जिले के चरखारी तहसील में सिंचाई सुविधा उपलब्ध कराने एवं अर्जुन बांध में अतिरिक्त पानी का उपयोग करने के चरखारी डाल नहर

परियोजना बनाई गई है।


कचंनौदा बांध परियोजना - इस परियोजना के अंतर्गत ललितपुर जिले में सजनम नदी पर पूर्व निर्मित सजनम बांध से 20 किमी नीचे एक अन्य बांध बनाया जा रहा है। इस परियोजना का उद्देश्य ललितपुर जिला में गोविंद सागर बांध की नहर प्रधाालियों के रेत भाग में सिंचाई की कमी की पूर्ति करना है।

मध्य गंगा नहर परियोजना द्वितीय चरण-  गंगा के बायें किनारे पर बिजनौर के पास एक बैराज बनाकर उससे नहरें निकालकर गंगा एवं रामगंगा के मधय सिंचाई की व्यवस्था की जा रही है।

बदायूं सिंचाई परियोजना - इस परियोजना के अंतगत बरेली, बदायं एवं शाहजहांपुर जनपद में सिंचाई सुविधा उपलब्ध कराने के लिए बरेली में रामगंगा पर एक बैराज बनाकर नहरें निर्मित की जा रही हैं।

राजा महेंद्र रिपुदमन सिंह चंबल डाल नहर परियोजना- यह नहर यमुना से इटावा से निकाली जा रही है। जिससे इटावा एवं आगरा में सिंचाई सुविधा उपलब्ध हा सकेगी।

गंगा जल परियोजना (पेयजल) - 50 क्यूसेक क्षमता के इस परियोजना का निर्माण दिल्ली-नोएडा बाईपास के समीप प्रताप विहार में किया जा रहा है। इस वाटर ट्रीटमेंट प्लांट से नोएडा एवं गाजियाबाद को अतिरिक्त पेयजल

मिलेगा।


गोकुल बैराज (पेयजल) - आगरा व मथुरा की पेयजल समस्या के निदान हेतू गोकुल बैराज परियोजना के अंतगत गोकुल के समीप यमुना नदी पर बैराज बनाकर वर्षा ऋतु का पानी 5 मीटर गहराई में संचित किये जाने केलिए इस परियोजना का निर्माण किया जा रहा है।

लवकुश बैराज (पेयजल)- कानपुर में गंगा पर बनने वाले इस बैराज का मुख्य उद्देश्य कानपुर नगर को पेयजल उपलब्ध कराना है। इस बैराज का निर्माण 440 करोड़ रुपए की  डा. राम मनोहर लोहिया जल सम्पूर्ति परियोजना

के तहत किया जा रहा है।


आगरा बैराज (पेयजल)- यह बैराज आगरा पेयजल उपलब्ध कराने के लिए ताजमहल से 8 किमी दूर यमुना पर बनाया जा रहा है।

उत्तर प्रदेश में पम्प नहरें


प्रदेश में बांध नहरों के अलावा पंप नहरों के भी विकास पर जोर दिया जा रहा है। वर्तमान में प्रदेश में मध्यम एवं वृहद् आकार वाली 28 पंप नहरें हैं, जिनमें से अधिकांश अपने जीवनकाल को पूर्ण कर चुकी हैं। कुछ पंप नहरें इस प्रकार हैं-

ज्ञानपुर पंप नहर परियोजना प्रयागराज, यमुना पंप नहर घाघरा पंप नहर, दोहरी घाट पंप नहर, देवकली पंप नहर तथा मोन पंप नहर सोनभद्र, जमानियां पंप नहर गाजीपुर। टाडा पंप नहर अम्बेडकरनगर, जरौती पंप नहर फतेहपुर ।


उत्तर प्रदेश में लघु सिंचाई

प्रदेश में लगभग 77 प्रतिशत सिंचाई लघु सिंचाई साधानों से की जाती है। इसमें से लगभग 78 प्रतिशत सिंचाई निजी साधनों से की जाती है। प्रदेश में लघु सिंचाई संबंधी निम्न कार्यक्रम चलाये जा रहे हैं-

1. सामुदायिक ब्लास्ट वेल योजना - 2011-12 में यह योजना प्रदेश के झांसी, ललितपुर, चित्रकूट, प्रयागराज, मिर्जापुर, सोनभद्र व चंदौली जिलों के 39 पठारी (पठारी ब्लाकों में लघु एवं सीमान्त कृषकों के लिए उन स्थानों पर लागू है जहां निशुल्क बोरिंग सम्भव नहीं।


आर्टीजन वेल योजना- जालौन में नदी गांव ब्लाक में पाताल तोड़ कूप बनाये जाते हैं। इस योजना में हैंडसेट आर्टीजन वेल के लिए कुल लागत का 50 प्रतिशत अधिकतम 5 हजार और मशीन निर्मित वेल के लिए 50 प्रतिशत, अधिकतम 15 हजार का अनुदान दिया जाता

है।


डॉ. राम मनोहर लोहिया सामूहिक नलकूप योजना- नव. 2012 से संचालित यह योजना भी गहरे स्ट्रेटा वाले क्षेत्रों में चलाई जा रही है जहां निशुल्क बोरिंग संभव नहीं है। इस योजना में समान्य श्रेणी के लघु व सीमान्त कृषक बाहुल्य समूह को अधिकतम 3 लाख 92 हजार रूपए का अनुदान जबकि एससी/एसटी ओबीसी अल्पसंख्यक श्रेणी के बाहुल्य समूह को अधिकतम 5 लाख रुपए का अनुदान दिया जाता है।


मध्यम गहराई नलकूप योजना - यह योजना 2004-05 में शुरू की गई। इस योजना में सरकार द्वारा 50 प्रतिशत (अधिकतम 7500 रुपए) का अनुदान दिया जाता है। इसमें 31-60 मी. गहराई तक की बोरिंग की जाती है।

निशुल्क बोरिंग योजना - सामान्य श्रेणी के लघु, सीमान्त तथा अनुसूचित जाति जनजाति के कृषकों हेतु यह योजना 1985 से चल रही है। इसमें 5, 7 या 10 हजार रुपए दिये जाते हैं। कृषकों हेतु 30 मीटर गहराई तक की बोरिंग फ्री है।

चेकडैम निर्माण योजना - प्रदेश के पठारी क्षेत्रों (बुन्दे) में वर्षा जल का उपयोग सिंचाई के साथ-साथ भूगर्भ जल को अधिक से अधिक रिचार्ज करने के लिए नदी/नालों पर चेकडैम बनाने संबंधी यह योजना 2008-09 से चलाई

जा रही है।


हैवी रिंग मशीनों द्वारा गहरे नलकूपों के निर्माण की योजना - यह योजना कठिन स्टेट वाले पठारी आदि क्षेत्रों में चल रही है। इसमें किसानों को सरकार द्वारा लागत का 50 प्रतिशत 1 लाख रुपए का अनुदान दिया जाता है। इसमें 60 मी. से अधिक गहराई की बोरिंग की जाती है।


इनवेल रिंग मशीनों द्वारा पथरीले स्थानों पर बोरिंग योजना - यह योजना बुंदेलखंड व प्रयागराज, आगरा, मिर्जापुर व सोनभद्र आदि जिलों में चल रही है। इसमें सरकार द्वारा लागत का 50 प्रतिशत अधिकतम 7500 रुपए का अनुदान दिया जाता है।

भूगर्भ जल विभाग

➤  प्रदेश की भू-जल सम्पदा एवं उससे सम्बंधित समस्याओं का अध्ययन आंकलन सर्वोक्षण व नियोजन तथा विकास हेतु दिशा-निर्देशन प्रबंधन के लिए 1975 में भू-गर्भ जल विभाग की स्थापना की गई।

➤  इस विभाग के अंतर्गत राज्य के नगरीय व ग्रामीण क्षेत्रों में जल स्तर मापन हेतु हाइड्रोग्राफ स्टेशन (निरीक्षण कृप) का नेटवर्क स्थापित है। जिन पर वर्ष में 6 बार (जनवरी, मई, जून, अगस्त, अक्तूबर व नवंबर) जल स्तर की मानीटरिंग की जाती है।

➤  भूगर्भ जल की सपन मानीटरिंग हेतू हाइड्रोग्राफ स्टेशन नेटवर्क के विस्तार हेतु पीजोमीटर का निर्माण ग्रामीण क्षेत्रों में न्याय पंचायत को इकाई मानकर 575 किमी ग्रिड पर तथा शहरी क्षेत्रों में वाटर सप्लाई जोन को इकाई मानकर 2 तथा 3 किमी ग्रिड पर किया जा रहा है।

➤  प्रदेश में 2001 में रेन हार्वेस्टिंग नीति लागू की गई है। इस नीति के तहत 300 वर्ग मीटर से अधिक क्षेत्रफल के निजी भवनों, शासकीय, अर्द्धशासकीय भवनों, ग्रुप हाउसिंग काम्पलेक्स आदि में रूफ टॉप रेन वाटर हार्वेस्टिंग की व्यवस्था लागू करने तथा जलाशयों तालाबों, पोखरों आदि को संरक्षित कर भूजल रिचार्जिग करना अनिवार्य कर दिया गया है। अत्यधिक भूजल दोहन को अब अपराध की श्रेणी लाते हुए दोषी की एक साल की कैद की सजा या प्रतिदिन 2000 रुपए के हिसाब से के (अधिकतम 1 लाख रुपए तक) जुर्माने का प्रावधान किया गया है।

➤  अब शहरी क्षेत्रों में 0.5 हार्सपावर व ग्रामीण क्षेत्रों में 7.5 हार्सपावर से अधिक क्षमता पंप बिना अनुमति के नहीं लगाये जा सकते हैं।

➤  अब 300 वर्ग मी, या उससे अधिक क्षेत्रफल के नवनिर्मित भवनों में रूफ टाप रेन वाटर हार्वेस्टिंग की व्यवस्था करना अनिवार्य कर दिया गया है।

➤  20 एकड़ से अधिक क्षेत्रफल की योजनाओं में कम से कम 5 प्रतिशत भूमि पर भूजल सिंचाई जलाशय अनिवार्य है।


राज्य भूजल संरक्षण मिशन - राज्य में भूजल संसाधनों के समग्र प्रबंधन एवं संरक्षण हेतु संचालित विभिन्न योजनाओं को एकीकृत कर राज्य भूजल संरक्षण मिशन शुरू किया जा रहा है।


भूगर्भ जल प्रभावित क्षेत्र - बेहिसाब जल दोहन के कारण डार्क विकास खण्डों की संख्या में तेजी से वृद्धि हो रही है। विभाग 10 वर्षों से ऐसे ब्लाकों के भूजल स्तर में 30 सेमी. से अधिक की गिरावट हुई है। प्रदेश के लखनऊ, उन्नाव, आगरा, प्रतापगढ़, झांसी, मुरादाबाद, मथुरा, बांदा, मिर्जापुर, गाजियाबाद, रामपुर,बागपत, प्रयागराज, सहारनपुर, आदि 43 जिलों के 271 ब्लाक व 22 शहर अतिदोहित के रूप में चिन्हित किये गए हैं। अतः इन ब्लाकों में भूजल सुधार कार्यक्रम गंभीरता से चलाये जाने

की जरूरत है।


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