महामना मदन मोहन मालवीय का जीवन परिचय

महामना मदन मोहन मालवीय का जीवन परिचय

महान देशभक्त, स्वतंत्रता सेनानी, राजनीतिज्ञ, शिक्षाविद, समाज सुधारक, उत्साही पत्रकार, दूरदृष्टा, प्रतिभाशाली अधिवक्ता, सफल सांसद, प्रयाग के भारती भवन पुस्तकालय, मैकडोनल यूनिवर्सिटी, हिंदू छात्रावास और मिण्टो पार्क के जन्मदाता, बाढ़, भूकम्प, साम्प्रदायिक दंगो और मार्शल लॉ से त्रस्त दुखियों को सम्बल प्रदान करने वाले, ऋषिकुल हरिद्वार, गोरक्षा एवं आयुर्वेद सम्मेलन तथा सेवा समिति न्यास स्काउट के संस्थापक, महान हिंदी प्रेमी, महामना मदन मोहन मालवीय का जन्म 25 दिसम्बर, 1861 (पौष कृष्णाष्ठमी, बुधवार, सम्वत 1918 विक्रमी) को प्रयाग के लाल डिग्गी मोहल्ले (भारतीय भवन, इलाहाबाद) में हुआ था। पिता पं. ब्रजनाथ अत्यधिक अध्यात्मिक प्रकृति के थे एवं सनातन धर्म में आस्था रखते थे। माता मूना देवी अत्यधिक धर्मनिष्ठ एवं ममतामयी माँ थीं।


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महामना मदन मोहन मालवीय का जीवन परिचय


शिक्षा-दीक्षा

मालवीय जी की प्रारम्भिक शिक्षा प्रयाग की धर्मज्ञानोपदेश पाठशाला में प्रारम्भ हुई। पंडित जी बचपन से ही धार्मिक विचारों के थे। विद्यालय जाते वक्त वह रोज हनुमान मंदिर जाकर अनुमान जी की प्रार्थना करते थे-

मनोजवं मारूततुल्य वेगं जितेन्द्रियम् बुद्धिमतां वरिष्ठम।

वातात्मजम् वानरयूथ मुख्यम श्रीरामदूतम शरणम प्रपद्ये ।।

उन्होंने 1864 में इलाहाबाद राजकीय हाई स्कूल से मैट्रिक और 1879 में मयोर सेण्ट्रल कॉलेज से एफ.ए की परीक्षा पास की। 1884 में कलकत्ता विश्वविद्यालय से बीए की परीक्षा उतीर्ण करने के पश्चात आप 1885 में एक स्कूल में अध्यापक हो गए। 1891 में एलएलबी करने के पश्चात आपने इलाहाबाद जिला न्यायालय में प्रैक्टिश प्रारम्भ की, इसके बाद 1893 में इलाहाबाद हाई कोर्ट में वकील के रूप में अपना नाम दर्ज करा दिया। 16 वर्ष की अवस्था में मालवीय जी का विवाह 1878 ई. में मिर्जापुर के पण्डित नन्दलाल की पुत्री कुन्दन देवी के साथ सम्पन्न हुआ।

 

संस्थापक एवं सम्पादक 

मालवीय जी कई संस्थाओं के संस्थापक एवं कई पत्र-पत्रिकाओं के सम्पादक रहे। उन्होंने प्रयाग हिंदू सभा, 1887 में भारत धर्म महामण्डल, प्रयाग सेवा समिति आदि समितियों की स्थापना की। 1884 ई. में मालवीय जी ने हिंदी उद्धारिणी प्रतिनिधि सभा के सदस्य के रूप में हिंदी का प्रचार प्रसार करने के लिए अथक योगदान किया। 1885 ई. में उन्होंने 'इण्डियन यूनियन' साप्ताहिक का सम्पादन किया। कालाकांकर के राजा रामपाल सिंह के अनुरोध पर मालवीय जी ने 1887 से 'हिंदुस्तान' का सम्पादन और 1891 में अयोध्यानाथ के 'इण्डियन ओपीनियन' का सम्पादन कर पत्रकारिता की दिशा और दशा बदल दी। 1907 में बसंत पंचमी के दिन हिंदी साप्ताहिक "अभ्युदय" का शुभारम्भ किया और 1909 में एक अंग्रेजी पत्र "लीडर" में भी कार्य किया। 1910 में 'मर्यादा' नामक हिंदी मासिक पत्रिका प्रारम्भ की। 1924 में दिल्ली आकर “हिंदुस्तान टाइम्स” को सुव्यवस्थित किया।


कांग्रेस के सदस्य के रूप में

मालवीय जी एक ओजस्वी वक्ता थे। 1886 में नवगठित कांग्रेस के कोलकाता अधिवेशन में मालवीय जी ने एक प्रेरणाप्रद भाषण दिया। इस भाषण के साथ ही मालवीय जी राजनीतिक परिदृश्य में उभरे। आप 1909 (लाहौर), 1918 (दिल्ली), 1930 (दिल्ली) और 1932 (कोलकाता) अधिवेशनों में कांग्रेस के अध्यक्ष रहे।


हिंदी के विकास में योगदान

मालवीय जी हिंदी के प्रमुख समर्थक थे। आपने उत्तर प्रदेश की अदालतों और दफ्तरों में हिंदी का व्यवहार करने को स्वीकृत कराया। तत्कालीन गवर्नर ने 1900 ई. में उनके इस अनुरोध को स्वीकार कर लिया। 1893 में मालवीय जी ने काशी नागरी प्रचारिणी सभा की स्थापना में अपना पूर्ण योगदान दिया। मालवीय जी की सहायता से 1910 में अखिल भारतीय हिंदी साहित्य सम्मेलन की स्थापना हुई। इसका पहला अधिवेशन 1910 में ही काशी में कराया गया। इसकी अध्यक्षता मालवीय जी ने ही की थी।


स्वतंत्रता आंदोलन में योगदान

मालवीय जी ने स्वतंत्रता संघर्ष में बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया। इस दौरान मालवीय जी कई बार जेल भी गए। गांधी जी के "नमक सत्याग्रह' और "सविनय अवज्ञा आन्दोलन" में मालवीय जी ने सक्रिय भूमिका निभाई थी। 1928 में मालवीय जी ने साइमन कमीशन का बहिष्कार किया। 1916 के लखनऊ पैक्ट के तहत मुसलमानों के लिए अलग निर्वाचन मंडल का विरोध किया। उन्होंने सत्यमेव जयते का नारा जन-जन में लोकप्रिय बनाया। मालवीय जी ने 1931 में गोलमेज सम्मेलन में देश का प्रतिनिधित्व भी किया था।


मालवीय जी का राजनीतिक जीवन

मालवीय जी 1903-1912 के दौरान प्रान्तीय विधायी परिषद के सदस्य रहे। 1913-1920 तक केन्द्रीय विधायी परिषद के सदस्य रहे। 1916-18 के दौरान आप भारतीय विधायी सभा के निर्वाचित सदस्य रहे। अगस्त 1926 में आपने लाला लाजपतराम के साथ मिलकर कांग्रेस स्वतंत्र पार्टी का गठन किया। 1916-1918 तक औद्योगिक आयोग के सदस्य रहे। नवम्बर 1919 से सितंबर 1939 तक बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के उप-कुलाधिपति रहे।


बनारस हिंदू विश्वविद्यालय की स्थापना 

बनारस हिंदू विश्वविद्यालय की स्थापना करना मालवीय जी का एक प्रमुख एवं ऐतिहासिक कार्य है। आज मालवीय जी की सर्वाधिक ख्याति बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के कारण ही है। प्रडित मदन मोहन मालवीय जी पर आयरिश महिला डॉ. एनी बेसेंट का बहुत अधिक प्रभाव था। आप शिक्षा कार्यक्रमों का प्रचार प्रसार करने भारत आई थीं। डॉ. एनी बेसेंट ने बनारस में 1889 में सेण्ट्रल हिंदू कॉलेज की स्थापना की। मालवीय जी ने बनारस के तत्कालीन राजा प्रभुनारायण सिंह जी की मदद से 1904 में बनारस हिंदू विश्वविद्यालय की स्थापना का प्रस्ताव किया था। इस प्रस्ताव को वर्ष 1908 में बनारस के टाउन हाल के मैदान में पारित कराया गया। सन् 1911 में डॉ. एनी बेसेंट की सहायता से इस प्रस्तावना को मंजूरी दिलाई गई। 28 नवम्बर 1911 को इस कार्य हेतु एक सोसायटी का गठन किया गया। इस सोसायटी का उद्देश्य "दि बनारस हिंदू यूनीवर्सिटी' की स्थापना करना था। 25 मार्च, 1915 को सर हरकोर्ट बटलर ने इस विश्वविद्यालय की स्थापना करने के लिए "इम्पीरियल लेजिस्लेटिव काउंसिल" में एक विधेयक प्रस्तुत किया। यह विधेयक 01 अक्टूबर, 1915 को "अधिनियम” के रूप में मंजूर कर लिया गया। बनारस हिंदू विश्वविद्यालय की आधारशिला 04 फरवरी, 1916 (माघ शुक्ल प्रतिपदा सम्वत 1972) को रखी गई। इस प्रकार बनारस हिंदू विश्वविद्यालय का जन्म हुआ।


"भारत रत्न"

महामना मदनमोहन मालवीय जी को राष्ट्र के प्रति की गई अनुकरणीय सेवाओं के लिए भारत सरकार ने 24 दिसम्बर, 2014 को देश का सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न (मरणोपरांत) देने की घोषणा की। कृतज्ञ राष्ट्र मालवीय जी द्वारा की गई सेवाओं के लिए उनके प्रति अभिभूत है।


स्मृति शेष

अपने हृदय की महानता के कारण सम्पूर्ण भारत वर्ष में “महामना" के रूप में विख्यात, सत्य, दया और न्याय की मूर्ति, करूणामय हृदय, मनुष्य मात्र से प्रेम, मन और वाणी के संयम, धर्म और देश के लिए सर्वत्याग, करने वाले पण्डित महामना मदनमोहन मालवीय जी का दिनांक 17 नवम्बर, 1946 को निधन हो गया। आत्मा परमात्मा में विलीन हो गई।


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