ए. पी. जे. अब्दुल कलाम का जीवन परिचय

ए. पी. जे. अब्दुल कलाम का जीवन परिचय

स्वतंत्र भारत के बारहवें राष्ट्रपति के रूप में प्रतिष्ठित ए. पी. जे. अब्दुल कलाम इस बात के प्रत्यक्ष उदाहरण हैं कि "गरीब से गरीब व्यक्ति भी दृढ़ इच्छा शक्ति, धैर्य, लगन और आस्था से महान से महान लक्ष्य प्राप्त कर सकता है।" कलाम का मानना है, "जीवन में आप अपने स्वयं के भीतरी संसाधनों के निवेश की इच्छा रखिए, खासकर अपनी कल्पना की। यही आपको निश्चित रूप से सफलता दिलाएगी। जब आप अपनी इच्छा एवं जिम्मेदारी से कोई काम अपने हाथ में लेते हैं तो आप एक इन्सान बन जाएंगे।" कलाम साहब को रामनाथपुरम के श्वार्टज हाईस्कूल के अपने अध्यापक अयादुरै सोलोमन के उन शब्दों ने सर्वाधि क प्रभावित किया जो सोलोमन अक्सर कहा करते थे, “जीवन में सफल होने और नतीजों को हासिल करने के लिए तुम्हें तीन प्रमुख शक्तिशाली चीजों को समझना चाहिए-इच्छा, आस्था और उम्मीदें।"


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ए. पी. जे. अब्दुल कलाम का जीवन परिचय


ए. पी. जे. अब्दुल कलाम, जिनका मानना है कि, “महान स्वप्नदर्शी के महान स्वप्न हमेशा सर्वोप्कृष्ट होते हैं और किसी भी सपने को साकार करने के लिए सपना देखना पड़ता है' का जन्म 15 अक्टूबर, 1931 को रामेश्वरम् (तमिलनाडु) में हुआ था। आपके पिता जैनुलाबदीन मारक्यान गाँव की पंचायत के प्रधान थे। माता आशियम्मा एक साधारण गृहणी थीं। पिता जैनुलाबदीन बहुत गरीब थे। मछलीपालन और नौकायन उनका प्रमुख व्यवसाय था। आप रामेश्वरम आने वाले तीर्थयात्रियों को धनुषकोडि गाँव से रामेश्वरम तक नाव से पहुंचाते थे। अपने भाई बहनों में सबसे छोटे होने के कारण उन्हें अपने भाई-बहनों का भरपूर प्यार मिला। उनका मानना है, "खुदा उन्हीं की मदद करता है जो अपनी मदद खुद करते हैं।" और मार्क्स की यह भविष्यवाणी कलाम पर पूर्णतया खरी उतरती है, "प्रतिभा के शिखर पर केवल वही पहुंच सकते हैं जो कण्टकाकीर्ण पहाड़ी रास्तों पर चलने से नहीं डरते।" कलाम जी कण्टकाकीर्ण पथ पर चलने से कभी नहीं हिचके।


संघर्षों भर बचपन

ए.जी.जे अब्दुल कलाम के जीवन की शुरूआत अत्यधिक कष्टों एवं गरीबी में हुई। कलाम के बड़े भाई मुथुमीरन मारक्यान का रामेश्वरम् की मस्जिद स्ट्रीट की संकरी गली में एक टूटा-फूटा मकान है । आप अखबारों के एजेंट हैं। बचपन में कलाम ने घर-घर अखबार बांटने का काम शुरू किया। "मैं अपने भाई की उसके काम में मदद करने के लिए रामेश्वरम में सुबह छपने वाले "दिनमणि' अखबार की प्रतियाँ घर-घर बाँटा करता था।" अखबार बाँटने के अलावा कलाम अपने पिता के कार्य में भी हाथ बंटाया करते थे। आजीविका के लिए वे तीर्थयात्रियों को अपने गाँव से नाव पर बिठाकर रामेश्वरम् तक पहुँचाने का काम भी करते थे।


जिज्ञासु मन

डा. कलाम बचपन से ही अत्यधिक जिज्ञासु प्रवृत्ति के रहे हैं। पिता तथा अपने भाई-बहिनों को नमाज पढ़ते देख उनके मन में अक्सर यह प्रश्न उठा करता था कि हम नमाज क्यों पढ़ते हैं। एक दिन आपने अपने पिता से इस विषय में पूछा तो उनके पिता ने जो उत्तर दिया कलाम उसे हमेशा याद रखते हैं, “इसमें कुछ भी रहस्यमय नहीं है। जब तुम नमाज पढ़ते हो तो शरीर से इतर ब्रह्माण्ड का हिस्सा बन जाते हो। इसमें धर्म, पंथ आदि का कोई भेदभाव नहीं होता है।" उन्होंने बचपन में खेतों में सारस और अन्य पक्षियों को ऊँची उड़ानें भरते देखकर एक दिन ऐसी ही उड़ानें भरने का निश्चय कर लिया।" पृथ्वी, जल, आकाश, ब्रह्माण्ड को देखकर अक्सर उनके मन में प्रश्न उठता था कि 'इन सब का निर्माता एवं नियन्ता कौन है'? डा. कलाम का कहना है, "ये पृथ्वी, ये आकाश, ये जल, सब उसके हैं । इस संसार में कोई ऐसी दैवीय शक्ति अवश्य है जो हमें सुख-दुख, विषाद और असफलता से छुटकारा दिलाती है व सही रास्ता दिखाती है।"


शिक्षा-दीक्षा

रामनाथपुरम् के श्वार्ट्ज हाई स्कूल से हाई स्कूल करने के बाद आपने उच्च शिक्षा के लिए तिरूचिरापल्ली के सेंट जोसेफ कालेज में दाखिला लिया। पहली बार गाँव छोड़ तिरूचिरापल्ली जा रहे अपने बेटे को ट्रेन में बिठाने जैनुलाबदीन स्टेशन तक आए थे। ट्रेन में बिठाते समय उन्होंने अपने बेटे से कहा था, "इस द्वीप में तुम्हारा शरीर अवश्य रहा है, पर तुम्हारी आत्मा नहीं। तुम्हारी आत्मा भविष्य के उस घर में है जहाँ हम कभी नहीं पहुंच सकते........, सपने में भी नहीं।" और हुआ भी यही। आज डा. कलाम जहाँ बैठे हैं वहाँ तक पहुंचने की बात उनके परिवार वाले सपने में भी नहीं सोंच सकते थे।


सेंट जोसेफ कालेज से 1954 में बी. एस सी. करने के बाद आपने 1954 में मद्रास इंस्टीटयूट आफ टेकनालोजी से 'एम टेक' के लिए फार्म भरा।


बहिन के कड़े और हार गिरवी रखे

कलाम जी का 'एम. टेक' के लिए चयन तो हो गया पर इसका दाखिला शुल्क था एक हजार रूपया। पिता जैनुलाबदीन ने एक साथ इतने पैसे जिन्दगी में कभी देखे भी नहीं थे तो फीस कहाँ से जमा करते। ऐसे वक्त पर सामने आईं आपकी बड़ी बहिन-जौहरा। जौहरा ने अपने कड़े और हार गिरवी रखकर कलाम जी की दाखिला फीस एम. आई. टी. में जमा की। कलाम जी लिखते है, "संस्थान के चयनित उम्मीदवारों की सूची में मेरा नाम तो आ गया। परन्तु इस संस्थान में दाखिला लेने के लिए करीब एक हजार रूपयों की जरूरत थी और मेरे पिता जी के पास इतना पैसा कभी हुआ ही नहीं। ऐसे समय में मुझे पढ़ाने के लिए मेरी बहन जौहरा आगे आईं और मेरी फीस के लिए उन्होंने अपने हाथों के कड़े और हार गिरवी रख दिए। मैंने भी अपनी पढ़ाई से ही उनके गिरवीं जेवरों को छुड़ाने की ठानी। उस समय मेरे सामने पैसा कमाने का सिर्फ एक ही रास्ता था कि मैं बड़ी मेहनत करूं और छात्रवृत्ति हासिल करूं।'" और इस तरह अब्दुल कलाम जी ने अपनी बहन के जेवर अपनी छात्रवृत्ति से छुड़वाए।


एम. आई. टी. में पहला वर्ष पूरा कर लेने के बाद आपने एअरोनाटिकल इंजीनियरिंग को अपना मुख्य विषय चुना। यहाँ से 1957 में आप ने वैमानिक इंजीनियरी में डिप्लोमा प्राप्त किया। 


डी. टी. डी. एण्ड पी. में वरिष्ठ वैज्ञानिक सहायक

“दृढ़ निश्चय, धैर्य, लगन और आस्था से बड़े से बड़ा लक्ष्य प्राप्त किया जा सकता है।" कलाम जी के जीवन में भी यह सच सिद्ध हुआ। 1957 में इंजीनियरिंग में डिप्लोमा लेकर जब एम. आई. टी से बाहर आए तब आपके समक्ष दो विकल्प थे। एक अवसर भारतीय वायुसेना का था और दूसरा रक्षा मंत्रालय के तकनीकी विकास एवं उत्पादन निदेशालय (डी. टी, डी एण्ड पी) (एयर ) का। आपने दोनों जगहों के लिए साक्षात्कार दिया। वर्तमान में तीनों सेनाओं के प्रधान डा. कलाम का चयन वायुसेना में नहीं हो सका जबकि आपका चयन डी. टी. डी. एण्ड पी (एयर) में वरिष्ठ वैज्ञानिक सहायक के पद पर हो गया। उस समय आपका वेतन दो सौ पचास रूपये प्रतिमाह था। “वायुसेना में भर्ती होने के लिए मुझे देहरादून पहुँचना था और डी. टी. डी. एण्ड पी (एअर ) में साक्षात्कार के लिए दिल्ली जाना था। अपनी मातृभूमि की विशालता से मेरा यह पहला सरोकार था। मैं एक हफ्ते दिल्ली में रूका और डी.टी.डी. एण्ड पी ( एअर ) में इंटरव्यू दिया। इसके बाद मैं वायुसेना में इण्टरव्यू देने के लिए देहरादून रवाना हो गया । वायुसेना के लिए पच्चीस में से जिन आठ उम्मीदवारों का कमीशन अधिकारी के लिए चयन हुआ, उसमें मैं नौंवे ...... मैं दिल्ली लौट आया और डी. नम्बर पर आकर अटक गया। टी.डी. एण्ड पी (एअर ) जाकर अपने इण्टरव्यू के नतीजे के बारे में पता लगाया। जवाब में मुझे नियुक्ति पत्र दे दिया गया। अगले ही दिन मैंने दो सौ पचास रूपये के मूल वेतन पर वरिष्ठ वैज्ञानिक सहायक के पद पर काम सभाल लिया।" यह बात 1958 की है।


1963 में आपका चयन भारतीय अन्तरिक्ष अनुसधान संगठन में राकेट इंजीनियर के पद पर हो गया। यहाँ आपने थुम्बा में राकेट इंजीनियरिंग डिवीजन की स्थापना की जिसमें आपने साउंडिग राकेट्स के लिए पेलोड रिकवरी सिस्टम्स, पायरोटेक्नीक्स, स्पिन डैस्पिन, कैमिकल रिलीज सिस्टम आदि का विकास किया।


चयन के कुछ दिन बाद ही आपको राकेट प्रक्षेपण की तकनीकियों का प्रशिक्षण लेने के लिए नेशनल ऐरोनाटिक्स एण्ड स्पेश एडमिनिस्ट्रेशन (नासा) भेज दिया गया । नासा से लौटने के बाद आपके निर्देशन में 21 नवम्बर, 1963 को भारत का पहला राकेट "नाइक-अपाची" छोड़ा गया। कुछ समय पश्चात आपको एस.एल.वी. योजना का प्रबंधक नियुक्त किया गया। थुम्बा से आपने 20 नवम्बर, 1967 को रोहिणी 75 राकेट का सफल प्रक्षेपण किया।


सफलता का सफर

प्रधानमंत्री के प्रमुख वैज्ञानिक सलाहकार तक-आपके नेतृत्व में 18 जुलाई, 1980 को प्रात: 8 बजकर तीन मिनट पर श्रीहरिकोटा प्रक्षेपण केन्द्र (शार ) से भारत का प्रथम उपग्रह प्रक्षेपण यान एस.एल.वी.-3 का प्रक्षेपण किया गया । उस दिन भारत उन विकसित राष्ट्रों की श्रेणी में शामिल हो गया जिनके पास उपग्रह प्रक्षेपण की क्षमता थी । इस उपलब्धि के लिए आपको 25 जनवरी 1981 को 'पद्म भूषण' उपाधि से सम्मानित किया गया।


31 मई 1981 को एस.एल.वी.-3 डी प्रक्षेपित किया गया। फरवरी 1982 में आपको डी. आर. डी. एल. के निदेशक पद पर नियुक्त किया गया। यहाँ आपको स्वदेशी मिसाइले बनाने का कार्य सौंपा गया। आपके सफल निदेशन में 27 जुलाई 1983 को आई.जी.एच.डी.पी. प्रक्षेपित किया गया तथा 26 जून 1984 को पहली परीक्षण मिसाइल प्रक्षेपित की गयी।


आपके निदेशन में 16 सितम्बर, 1985 को 'त्रिसूल' मिसाइल का सफल प्रक्षेपण किया गया तथा सितम्बर 1988 में 'पृथ्वी' मिसाइल की दूसरी उड़ान की गयी। 22 मई 1989 को आपने 'अग्नि' मिसाइल का सफल प्रक्षेपण कराया। इन उपलबिधयों के सम्मान स्वरूप भारत सरकार ने आपको 26 जनवरी 1990 को पद्म विभूषण की उपाधि से विभूषित किया।


1992 में आपको डी.आर.डी.ओ. का अध्यक्ष बनाया गया। इस पद पर आप 1999 तक रहे। डी.आर.डी.ओ. के अध्यक्ष के रूप में 11 मई, 1998 को पोकरण में परमाणु विस्फोट कराने का श्रेय आपको ही प्राप्त है। 1999 में आपको प्रधानमंत्री का प्रमुख वैज्ञानिक सलाहकार नियुक्त किया गया।


भारत रत्न

भारत सरकार ने आपकी उपलब्धियों से प्रेरित होकर 1997 में आपको भारत के सर्वोच्च नागरिक सम्मान 'भारत रत्न' से सम्मानित किया।


राष्ट्रपति-अब्दुल कलाम

'जब आप भ्रमों से मुक्त एवं शान्तचित्त होते हैं तभी किसी काम को बेहतर ढंग से कर पाते हैं।" और अपने राष्ट्रपति के चुनाव को बेहतर ढंग से अंजाम देते हुए डा.ए.पी.जे. अब्दुल कलाम अपनी निकटतम प्रतिद्वन्दी कैप्टन लक्ष्मी सहगल को हराकर विश्व के विशालतम गणतन्त्र भारत के बारहवें राष्ट्रपति पद पर पदासीन हुए। आपको गुरूवार 25 जुलाई, 2002 को प्रात: 9.55 बजे संसद भवन के केन्द्रीय कक्ष में भारत के तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश बी.एन. किरपाल ने राष्ट्रपति पद की शपथ दिलाई।


'तन्मे मनः शिवसंकल्पमस्तु' अर्थात मेरा मन सभी के कल्याण के लिए ओतप्रोत हो, की भावना से प्रेरित डा.ए.पी.जे.अब्दुल कलाम ने संसद के दोनों सदनों को सम्बोधित करते हुए कहा "इस समय मेरे मन में श्री राग त्यागराज स्वामी के कीर्तन की सुन्दर पंक्तियाँ गूंज रहीं है “ऐन्दारो महनुभावलू अन्दरिकी 'वदनमुलु' (मैं सभी महान इन्सानों को प्रणाम करता हूँ।) हमारी समाज की विरासत 'वसुधैव कुटुम्बकम' पर आधारित है देश में लोग गरीबी की रेखा से नीचे जीवनयापन कर रहे हैं, कुपोषण के शिकार हैं और वे प्राथमिक शिक्षा से भी वंचित हैं। हमारा लक्ष्य है कि उन्हें गरीबी से मुक्त किया जाए, स्वस्थ और साक्षर बनाया जाए। इसके लिए हमें लोगों के मन को उद्वेलित करना होगा। और इस दिशा में तेजी से बढ़ना होगा। यदि हम तेजी से कार्य करना नहीं सीखेंगे तो एक विकसित राष्ट्र के रूप में नहीं उभर सकते। मुझे महान संत कबीर की ये पंक्तियाँ याद आ रहीं है, "काल करै सो आज कर, आज करै सो अब ।" किसी भी राष्ट्र में वे सब गुण होने चाहिए जिनका उल्लेख 2000 वर्ष पूर्व कवि तिरूक्कुरल ने किया है, "पिणि इन्मैं सेल्वम विल्लैविन्वम एमम् अणियेन्ब नाटिटकव्वैन्दु' अर्थात रोगमुक्त होना, समृद्ध बनना, अधिक उत्पादन करना, सौहार्दपूर्ण जीवन व्यतीत करना और सुरक्षा का मजबूत होना ।"


सादगी की प्रतिमूर्ति, धर्मनिरपेक्ष कलाम

“महानता विनम्रता के चोले में आती है।" सैमुअल बटलर ने जब ये शब्द कहे होंगे तो निश्चय ही उनके मन में डा.ए.पी.जे. अब्दुल कलाम जैसे व्यक्ति का ध्यान रहा होगा। एस.एल.वी.-3 के प्रक्षेपण की सफलता के शुभ अवसर पर इन्दिरा गाँधी ने आपको दिल्ली बुलाया । कलाम साहब रोजाना की तरह ही सादे कपड़ों और हवाई चप्पल में संसद भवन पहुंच गए।


प्रधानमंत्री के प्रमुख वैज्ञानिक सलाहकार के रूप में उन्हें कैबिनेट मंत्री का दर्जा मिला हुआ था और अगर आप चाहते तो आपको दिल्ली में आलीशान बंगला मिल गया होता परन्तु आपने अपने दो कमरे के फ्लैट में ही रहना पसन्द किया।


उनकी जीवन शैली बिल्कुल सरल है। आप शुद्ध शाकाहारी हैं। आपका विचार है “स्वास्थ्य का आधार, शाकाहार।" आप दिन में 18 घण्टे काम करते हैं । आप शराब या सिगरेट कुछ भी नहीं पीते हैं। अवकाश के क्षणों में आप रूद्रवीणा बजाते हैं। प्रसिद्ध तमिल कवि सुव्रहमण्यम आपके प्रिय कवि है। आपको 'कुरान' और 'गीता' दोनो का विशद ज्ञान है। अविवाहित कलाम को सबकी चिंता है। अपंगों के लिए आपने 300 ग्राम बजन का क्रत्रिम यंत्र विकसित किया है। सादगी पसंद डा. कलाम के पास अभी तक अपना टी.वी. सेट भी नहीं है। अपने विवाह के बारे में आपका कहना है, "यदि मैं शादीशुदा होता तो जो उपलब्धियाँ आज मुझे हासिल हुई हैं उनमें से आधी भी नहीं मिल पाती।" आपको लेखन का भी शौक है 'विंग्स आफ फायर' और 'विजन 2020' आपकी प्रकाशित कृतियाँ है। अपने से बड़ों का आप अत्यधिक सम्मान करते हैं। आपने अपने परदादा अबुल, दादा पकीर और पिता जैनुलाबदीन के प्रति अपने सम्मान के कारण ही अपने नाम के साथ अबुल पाकिर जैनुलाबदीन जोड़ा । तो ऐसे हैं हमारे राष्ट्रपति अबुल पाकिर जैनुलाबदीन अब्दुल कलाम।


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